श्री चैतन्य महाप्रभु मध्ययुगीन भारत की म्हणतं आध्यात्मिक विभूति है | जब हिन्दू धर्म तथा समाज विजातीय भावों द्वारा आक्रान्त हो रहा था, ऐसे कल में उनके आविर्भाव से इस राष्ट्र में मानो एक नवीन प्राणवायु का संचार हुआ | आज भी उनका जाज्वल्यमान पूत चरित हमारे जीवन में श्रद्धा, भक्ति, वैराग्य, अनासक्ति आदि सात्त्विक भावों की प्रेरणा जगाता है | वैसे तो भारत की विभिन्न भाषाओँ तथा अंग्रेजी में भी महाप्रभु की कई जीवनियाँ उपलब्ध है, तथापि रामकृष्ण संघ के एक वरिष्ठ संन्यासी, ब्रह्मलीन स्वामी सारदेशानन्द जी द्वारा बँगला में रचित ग्रन्थ उनमें अपना एक वशिष्ठ स्थान रखता है | लेखक ने अपनी प्रस्तावना में बताया है की इस ग्रन्थ के लिए उपादान उन्होंने मुख्यतः प्राचीन ग्रंथों से ही संग्रह किये है, अतएव यह जीवनी अत्यंत प्रामाणिक बन पड़ी है | इस ग्रन्थ के माध्यम से श्री चैतन्यदेव का एक अति सजीव तथा मनोहारी चित्र उभरता गया है |
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